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कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता हैरंजिश ही सही,दिल ही दुखाने के लिए आ।<br>मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।<br>मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,<br>ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है॥ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ॥ <br>
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कविता कोश में [[कुमार विश्वासअहमद फ़राज़]]
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