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"गेहूँ का थैला / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर

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<poem>बचपन में लिखे थे उसने
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कुछ अपशब्द
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दीवार के सहारे
दीवार की छाती पर.
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भरा पड़ा
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खड़ा है
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गेहूँ का थैला
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कहते जिसे हम
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अपनी भाषा में-
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पीसणा।
  
अब कई गुणा होकर
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बड़े ही जतन से
पसर गए हैं बरसों बाद
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पत्नी ने जिसे
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छाज में छटक-फटक
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किया साफ
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बीन दिया
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कंकर-कचरा सारा
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उड़ा दी खेह-खपरिया
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हवा के संग।
  
पोत देना चाहता है वह उन्हें
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अब जाएगा
एक ही झटके में
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आटा-चक्की तक
एक साथ.
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बड़ी ही शान से
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सवार हो
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मेरे मोढ़े पर।
  
बेटी जो
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इसी गली से
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                (मोढ़े=कंधे)
स्कूल जाने-आने लगी है.
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04:02, 30 अक्टूबर 2010 का अवतरण

आँगन में
दीवार के सहारे
भरा पड़ा
खड़ा है
गेहूँ का थैला
कहते जिसे हम
अपनी भाषा में-
पीसणा।

बड़े ही जतन से
पत्नी ने जिसे
छाज में छटक-फटक
किया साफ
बीन दिया
कंकर-कचरा सारा
उड़ा दी खेह-खपरिया
हवा के संग।

अब जाएगा
आटा-चक्की तक
बड़ी ही शान से
सवार हो
मेरे मोढ़े पर।


                 (मोढ़े=कंधे)