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बुरका / पवन करण

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|रचनाकार=पवन करण |संग्रह=स्त्री मेरे भीतर / पवन करण
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तुम बार-बार कहते हो
 
और मुझे ज़रा भी
 
यक़ीन नहीं होता
 
इसे मेरे लिए
 
ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है
 
तुम्हारे हुक्म पर जब भी
 
पहनती हूँ इसे
 
कतई स्वीकार नहीं करती
 
मेरी नुची हुई देह
 
स्वीकार नहीं करती
 
हर बार चीख-चीखकर
 
कहती है
 
नहीं, इसे ख़ुदा ने नहीं
 
तुमने बनाया है
 
मेरा ख़ुदा कहलाने के लोभ में
 
मुझे इसे तुमने पहनाया है
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