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"शब्द / कन्हैया लाल सेठिया" के अवतरणों में अंतर

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नहीं पकड़ी
 
नहीं पकड़ी
ऊपर उठी हुई अनुगूंज
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ऊपर उठी हुई अनुगूँज
 
बहरे आकाश ने
 
बहरे आकाश ने
 
लेकिन
 
लेकिन
 
पकड़ लिया उसे
 
पकड़ लिया उसे
 
गली में बैठे हुए
 
गली में बैठे हुए
अंधे सूरदास ने ।
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अँधे सूरदास ने ।
 
                  
 
                  
 
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
 
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
 
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11:30, 1 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

प्रत्येक
शब्द के बीज में है -
अर्थ का वृक्ष ।
वह उगेगा
जव मिलेगी
अनुभव की धारा
संवेदना का जल ।
             
निगूंढ़
बजा कर
एक गीत की धुन
रख दिया सितार को
यथास्थान
गूंगे वादक ने ।

नहीं पकड़ी
ऊपर उठी हुई अनुगूँज
बहरे आकाश ने
लेकिन
पकड़ लिया उसे
गली में बैठे हुए
अँधे सूरदास ने ।
                
अनुवाद : मोहन आलोक