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"वक़्त तलाशी लेगा / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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गीतों में गंगाजल | गीतों में गंगाजल |
20:37, 5 नवम्बर 2010 का अवतरण
वक़्त तलाशी लेगा
वह भी चढ़े बुढ़ापे में
सँभल कर चल ।
कोई भी सामान न रखना
जाना-पहचाना
किसी शत्रु का, किसी मित्र का
ढंग न अपनाना
अपनी छोटी-सी ज़मीन पर
अपनी उगा फसल
सँभल कर चल ।
ख्वारी हो सफ़ेद बालों की
ऐसा मत करना
ज़हर जवानी में पी कर ही
जीती है रचना
जितना है उतना ही रख
गीतों में गंगाजल
वे जो आएंगे
छानेंगे कपड़े बदल-बदल
सँभल कर चल ।