भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो घर भी कोई घर है जहाँ बच्चियाँ न हों / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> वो शाख़ है न फूल, अगर तितलिय…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:45, 6 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
वो शाख़ है न फूल, अगर तितलियाँ न हों
वो घर भी कोई घर है जहाँ बच्चियाँ न हों
पलकों से आँसुओं की महक आनी चाहिए
ख़ाली है आसमान अगर बदलियाँ न हों
दुश्मन को भी ख़ुदा कभी ऐसा मकाँ न दे
ताज़ा हवा की जिसमें कहीं खिड़कियाँ न हों
मै पूछता हूँ मेरी गली में वो आए क्यों
जिस डाकिए के पास तेरी चिट्ठियाँ न हों