भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्यार पंछी,सोच पिंजरा / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> प्यार पंछी सोच पिंजरा दोनो…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:07, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
प्यार पंछी सोच पिंजरा दोनों अपने साथ हैं,
एक सच्चा, एक झूठा, दोनों अपने साथ हैं,
आसमाँ के साथ हमको ये जमीं भी चाहिए,
भोर बिटिया, साँझ माता दोनों अपने साथ हैं।
आग की दस्तार बाँधी, फूल की बारिश हुई,
धूप पर्वत, शाम झरना, दोनों अपने साथ हैं।
ये बदन की दुनियादारी और मेरा दरवेश दिल,
झूठ माटी, साँच सोना, दोनों अपने साथ हैं।
वो जवानी चार दिन की चाँदनी थी अब कहाँ,
आज बचपन और बुढ़ापा दोनों अपने साथ हैं।
मेरा और सूरज का रिश्ता बाप बेटे का सफ़र,
चंदा मामा, गंगा मैया, दोनों अपने साथ हैं।
जो मिला वो खो गया, जो खो गया वो मिल गया,
आने वाला, जाने वाला, दोनों अपने साथ हैं।