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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}[[Category:बशीर बद्र]]<poem>आ चाँदनी भी मेरी तरह जाग रही हैपलकों पे सितारों को लिये रात खड़ी है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे होंअल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सुनी है
आ चांदनी भी वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरेबचपन की ग़ज़ल ही मेरी तरह जाग महबूब रही है <br>पलकों पे सितारों को लिये रात खड़ी है <br><br>
ये बात कि सूरत ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के भले दिल के बुरे हों <br>फैला दिये सायेअल्लाह करे झूठ हो बहुतों से सूनी जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है <br><br>
वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे <br>बचपन की ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है <br><br> ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिये साये <br>जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है <br><br> हम दिल्ली भी हो आये हैं लाहौर भी घूमे <br>ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है <br><br/poem>