भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इन आंखों से दिन रात बरसात होगी / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
 
इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
 
इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी
+
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात<ref>भावनाओं में ख़र्च
 +
</ref> होगी
  
 
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
 
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
 
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
 
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
  
सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
+
सदाओं को अल्फाज़<ref>शब्द
 +
</ref> मिलने न पायें
 
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी
 
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी
  
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
+
चराग़ों को आँखों में महफूज़<ref>सुरक्षित
 +
</ref> रखना
 
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
 
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
  
अज़ल-ता-अब्द तक सफ़र ही सफ़र है
+
अज़ल-ता-अब्द<ref>आदि से अंत
 +
</ref> तक सफ़र ही सफ़र है
 
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी
 
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKCatMeaning}}

17:55, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण

इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात<ref>भावनाओं में ख़र्च
</ref> होगी

मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़<ref>शब्द
</ref> मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चराग़ों को आँखों में महफूज़<ref>सुरक्षित
</ref> रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द<ref>आदि से अंत
</ref> तक सफ़र ही सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी

साँचा:KKCatMeaning