भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन आंखों से दिन रात बरसात होगी / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी | कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी | ||
</poem> | </poem> | ||
− | + | {KKCatMeaning} |
17:56, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण
इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी
अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात<ref>भावनाओं में ख़र्च
</ref> होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
सदाओं को अल्फाज़<ref>शब्द
</ref> मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी
चराग़ों को आँखों में महफूज़<ref>सुरक्षित
</ref> रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
अज़ल-ता-अब्द<ref>आदि से अंत
</ref> तक सफ़र ही सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी
{KKCatMeaning}