भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नदी / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= द्विजेन्द्र 'द्विज' }} {{KKCatKavita}} <poem> किनारे अकेले रह …) |
|||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
उस पार. | उस पार. | ||
+ | |||
+ | (1983-84) | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | साभार: विपाशा-1986 |
18:45, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण
किनारे अकेले रह कर भी
किनारे नहीं होते
किनारों के बीच बहती है
एक नदी
लाती है सन्देश
सुनाती है कहानियाँ
परीलोक की
मरुस्थल में बहाती है पानी.
किनारों का मिलना
इस नदी का मिट जाना है
नदी के बहने में ही
अस्तित्व है किनारों का
नदी ही तो बहती है
इस पार
उस पार
इस पार
उस पार.
(1983-84)
साभार: विपाशा-1986