"महाश्वेता क्या लिखती हैं / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
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महाश्वेवता | महाश्वेवता | ||
− | गल्प नहीं | + | गल्प नहीं लिखतीं । |
महाश्वेता रचती हैं | महाश्वेता रचती हैं | ||
− | आदिम समाज की करुणा का | + | आदिम समाज की करुणा का महासंगीत । |
वृक्षों की, | वृक्षों की, | ||
वनचरों की, | वनचरों की, | ||
− | लोक की चिंताओं का अलापती हैं | + | लोक की चिंताओं का अलापती हैं राग । |
− | महाश्वेवता की | + | महाश्वेवता की अनुभूतियाँ |
जब ग्रहण करती हैं आकार | जब ग्रहण करती हैं आकार | ||
वृक्षों का कंपन, | वृक्षों का कंपन, | ||
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लोक का वंदन | लोक का वंदन | ||
सब कुछ समाहित होता चलता है | सब कुछ समाहित होता चलता है | ||
− | उनकी रचनाओं | + | उनकी रचनाओं में । |
− | महाश्वेता नहीं | + | महाश्वेता नहीं बाँचती अपनी प्रशस्तियों |
या अपने दुःखों के अतिरंजित अध्याय, | या अपने दुःखों के अतिरंजित अध्याय, | ||
वे घूमती हैं अरण्यों के बीच... | वे घूमती हैं अरण्यों के बीच... | ||
− | + | निःशंक, | |
− | + | प्रकाशपुँज की तरह, | |
जगाती हैं प्रतिरोध की शक्ति | जगाती हैं प्रतिरोध की शक्ति | ||
− | + | निर्बल, असहाय, आकुल मनों में । | |
देती हैं आर्त्तजनों को आश्रय | देती हैं आर्त्तजनों को आश्रय | ||
− | घोर हताशा के क्षणों | + | घोर हताशा के क्षणों में । |
महाश्वेता | महाश्वेता | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 38: | ||
परंपराओं से, | परंपराओं से, | ||
− | पुराकथाओं | + | पुराकथाओं से । |
द्रोपदी मझेन,दूलन गंजू, | द्रोपदी मझेन,दूलन गंजू, | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 45: | ||
नहीं हैं महाश्वेता की कल्पना के पात्र, | नहीं हैं महाश्वेता की कल्पना के पात्र, | ||
हाड-मांस वाले जीते जागे चरित्र हैं वे | हाड-मांस वाले जीते जागे चरित्र हैं वे | ||
− | इसी चराचर जगत | + | इसी चराचर जगत के । |
महाश्वेता का लिखा, | महाश्वेता का लिखा, |
19:49, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
महाश्वेवता
गल्प नहीं लिखतीं ।
महाश्वेता रचती हैं
आदिम समाज की करुणा का महासंगीत ।
वृक्षों की,
वनचरों की,
लोक की चिंताओं का अलापती हैं राग ।
महाश्वेवता की अनुभूतियाँ
जब ग्रहण करती हैं आकार
वृक्षों का कंपन,
वनचरों का नर्तन,
लोक का वंदन
सब कुछ समाहित होता चलता है
उनकी रचनाओं में ।
महाश्वेता नहीं बाँचती अपनी प्रशस्तियों
या अपने दुःखों के अतिरंजित अध्याय,
वे घूमती हैं अरण्यों के बीच...
निःशंक,
प्रकाशपुँज की तरह,
जगाती हैं प्रतिरोध की शक्ति
निर्बल, असहाय, आकुल मनों में ।
देती हैं आर्त्तजनों को आश्रय
घोर हताशा के क्षणों में ।
महाश्वेता
अपने समय की सच्चाई को
मिथकों में ढाल कर
जोड़ती हैं स्मृतियों से,
परंपराओं से,
पुराकथाओं से ।
द्रोपदी मझेन,दूलन गंजू,
चण्डी वायेन, श्रीपद लाल,
जटी ठकुराइन
नहीं हैं महाश्वेता की कल्पना के पात्र,
हाड-मांस वाले जीते जागे चरित्र हैं वे
इसी चराचर जगत के ।
महाश्वेता का लिखा,
महाश्वेता का कहा,
महाश्वेता का जिया
हर शब्द...
हर कर्म...
सत्ता के अनाचार से सीधा टकराता है ।
वह लोक-रंजन का नहीं,
लोक-चिंतन का रास्ता दिखाता है ।