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"माँ जो रूठे / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर

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चाँदनी का शहर, तारों की हर गली,
 
चाँदनी का शहर, तारों की हर गली,
 
माँ की गोदी में हम घूम आए ।
 
माँ की गोदी में हम घूम आए ।

19:49, 7 नवम्बर 2010 का अवतरण


चाँदनी का शहर, तारों की हर गली,
माँ की गोदी में हम घूम आए ।
नीला-नीला गगन चूम आए ।

पंछियों की तरह पंख अपने न थे,
ऊँचे उड़ने के भी कोई सपने न थे,
माँ का आँचल मिला हमको जबसे मगर
हर जलन, हर तपन भूल आए ।

दूसरों के लिए सारा संसार था,
पर हमारे लिए माँ का ही प्यार था,
सारे नाते हमारे थे माँ से जुड़े,
माँ जो रूठे तो जग रूठ जाए ।