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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : जहाँ भर में हमें बौना बनावे धर्म फूलों का चक्करगजरा<br> '''रचनाकार:''' [[पुरुषोत्तम 'यक़ीन'रमेश तैलंग]]</td>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
जहाँ भर बहना, तेरी चोटी में हमें बौना बनावे धर्म का चक्करहैं इंसाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म फूलों का चक्करगजरा ।
ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगड़ाफूलों के गजरे नेकरोड़ों को हज़ारों घर-भर महकाया,बतलाना, बतलानाकौन इसे लाया ?साँसों में गिनावे धर्म छोड़ गयाख़ुशबू का चक्करलहरा ।
चमन गजरे में फ़ूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगोंफूल खिलेबुलों को खून बेला-जुही के ,आँखों में तेरी हैंआँसू रुलावे धर्म का चक्करखुशी के,चेहरे पर बिखरा हैजादू सुनहरा ।
कभी शायद सिखावे था मुहब्बततुझ पर ही नज़रें हैंछोटे-मेल लोगों कोसबक नफ़रत का लेकिन अब पढ़ावे धर्म का चक्कर सियासत बड़ों की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को,जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्करबात हुई बहना,आज क्या अनोखी ?यक़ीनन कुर्सियाँ हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िरकिसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारीनिज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर निकलने ही नहीं देता जहालत के अँधेरे सेक्या इसमें है कोई"यक़ीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्करराज बड़ा गहरा ?
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