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"अब बुलाऊँ भी तुम्हें / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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देख लूं मैं भी कि तुम कितने निठुर हो,
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी<br>
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अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!
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देख लूं मैं भी कि तुम कितने निठुर हो,<br>
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जान लूं मैं भी कि तुम कैसे शिकारी,
किस कदर इन आँसुओं से बेखबर हो,<br>
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चोट कैसी तीर की होती तुम्हारी,
इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे<br>
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इसलिए घायल हृदय लेकर खड़ा हूँ
मैं बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना।<br>
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लो लगाओ साधकर अपना निशाना!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!<br><br>
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अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!
जान लूं मैं भी कि तुम कैसे शिकारी,<br>
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चोट कैसी तीर की होती तुम्हारी,<br>
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एक भी अरमान रह जाए न मन में,
इसलिए घायल हृदय लेकर खड़ा हूँ<br>
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औ, न बचे एक भी आँसू नयन में,
लो लगाओ साधकर अपना निशाना!<br>
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इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!<br><br>
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एक ठोकर लाश में मेरी लगाना!
एक भी अरमान रह जाए न मन में,<br>
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औ, न मचे एक भी आँसू नयन में,<br>
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एक ठोकर लाश में मेरी लगाना!<br>
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अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!! <br>
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01:20, 8 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना!
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी
छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,
इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो
द्वार तक आकर हमारे लौट जाना!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!

देख लूं मैं भी कि तुम कितने निठुर हो,
किस कदर इन आँसुओं से बेखबर हो,
इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे
मैं बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना।
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!

जान लूं मैं भी कि तुम कैसे शिकारी,
चोट कैसी तीर की होती तुम्हारी,
इसलिए घायल हृदय लेकर खड़ा हूँ
लो लगाओ साधकर अपना निशाना!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!

एक भी अरमान रह जाए न मन में,
औ, न बचे एक भी आँसू नयन में,
इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से
एक ठोकर लाश में मेरी लगाना!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!