Changes

|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है,
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,<br>प्यास शेष है,<br>अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,<br>पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,<br>श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,<br>अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,<br>अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,<br>अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।<br>अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।<br>प्यास शेष है।<br> अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,<br>गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,<br>खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,<br>अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण,<br>केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,<br>अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।<br>अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>प्यास शेष है।<br> अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,<br>सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,<br>अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट<br>देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,<br>रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-<br>आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।<br>अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>प्यास शेष है।<br> अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,<br>अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,<br>पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,<br>अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,<br>एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,<br>अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।<br>अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>प्यास शेष है।<br> अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,<br>अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,<br>अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,<br>अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,<br>अभी दूर है प्रात, रात के प्रणय-पत्र में-<br>बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।<br>अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>
प्यास शेष है॥
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,035
edits