भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समुद्र का गीत / रैनेर मरिया रिल्के" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=इला कुमार
+
|रचनाकार=रैनेर मरिया रिल्के
|संग्रह=टूटे पंखो वाला समय / इला कुमार
+
|संग्रह=टूटे पंखो वाला समय / रैनेर मरिया रिल्के
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
+
<Poem>
युगों पुरानी समुद्र की तरफ से आती सांस
+
युगों पुरानी समुद्र की तरफ से आती साँस
 
रात में  
 
रात में  
 
समुद्री हवा
 
समुद्री हवा
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
  
 
जो भी जगता है उसे
 
जो भी जगता है उसे
अपना रास्ता सवयं चुनना होगा
+
अपना रास्ता स्वयं चुनना होगा
तुमसे ज्यादा समय तक टिक रहने के लिए
+
तुमसे ज़्यादा समय तक टिक रहने के लिए
 
समुद्र से आती युगों पुरानी सांस  
 
समुद्र से आती युगों पुरानी सांस  
 
मानो पुरातन शिलाओं के लिए ही मात्र बहती हुई
 
मानो पुरातन शिलाओं के लिए ही मात्र बहती हुई
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
प्रविष्ट होती हुई...
 
प्रविष्ट होती हुई...
  
चांद की रोशनी में ऊंचे खड़े  
+
चाँद की रोशनी में ऊँचे खड़े  
किसी मुकुलित अंजीर वृक्ष के द्वारा तुम किस कदर संवेगित.
+
किसी मुकुलित अंजीर वृक्ष के द्वारा तुम किस कदर संवेगित
 +
 
 +
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : इला कुमार'''
 
</poem>
 
</poem>

12:25, 9 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

युगों पुरानी समुद्र की तरफ से आती साँस
रात में
समुद्री हवा
तुम किसी की तलाश में नहीं

जो भी जगता है उसे
अपना रास्ता स्वयं चुनना होगा
तुमसे ज़्यादा समय तक टिक रहने के लिए
समुद्र से आती युगों पुरानी सांस
मानो पुरातन शिलाओं के लिए ही मात्र बहती हुई
शुद्धता भरे आकाश को दूर-दराज में चीर कर
प्रविष्ट होती हुई...

ओ चाँद की रोशनी में ऊँचे खड़े
किसी मुकुलित अंजीर वृक्ष के द्वारा तुम किस कदर संवेगित ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : इला कुमार