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"चक्की पर गेहूं लिए खड़ा / bharat bhusan" के अवतरणों में अंतर
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<poem>चक्की पर गेहूं लिए खड़ा मैं सोच रहा उखड़ा उखड़ा | <poem>चक्की पर गेहूं लिए खड़ा मैं सोच रहा उखड़ा उखड़ा | ||
क्यों दो पाटो वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई | क्यों दो पाटो वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई | ||
− | लेखनी मिली थी गीतव्रता प्रार्थना पत्र लिखते बीती | + | लेखनी मिली थी गीतव्रता प्रार्थना-पत्र लिखते बीती |
जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती-सीती | जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती-सीती | ||
हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले कुलमुला गई | हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले कुलमुला गई |
21:59, 10 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
चक्की पर गेहूं लिए खड़ा मैं सोच रहा उखड़ा उखड़ा
क्यों दो पाटो वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई
लेखनी मिली थी गीतव्रता प्रार्थना-पत्र लिखते बीती
जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती-सीती
हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले कुलमुला गई
कन्धों पर चढ़ अगली पीढ़ी जिद करती है गुब्बारों की
यत्नों से कई गुनी ऊँची डाली है लाल अनारों की
प्रत्येक किरण पल भर उजला काले कम्बल में सुला गई
गीतों की जन्म कुंडली में संभावित थी ये अनहोनी
मोमिया मूर्ति को पैदल ही मरुथल की दोपहरी ढोनी
खंडित भी जाना पड़ा वहां जिन्दगी जहाँ भी बुला गई