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"हम देखेंगे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
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− | रुई की तरह उड़ जाएँगे | + | रुई की तरह उड़ जाएँगे |
− | + | हम महक़ूमों के पाँव तले | |
− | + | ये धरती धड़-धड़ धड़केगी | |
− | और अहल-ए- | + | और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर |
− | जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी | + | जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी |
− | हम अहल-ए- | + | जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से |
− | मसनद पे बिठाए | + | सब बुत उठवाए जाएँगे |
− | सब ताज उछाले | + | हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम |
− | सब | + | मसनद पे बिठाए जाएँगे |
− | + | सब ताज उछाले जाएँगे | |
+ | सब तख़्त गिराए जाएँगे | ||
+ | बस नाम रहेगा अल्लाह का | ||
+ | जो वायब भी है हाज़िर भी | ||
+ | जो नाज़िर भी है मंज़र भी | ||
+ | उट्ठेगा नलहन का नारा | ||
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | ||
+ | और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा | ||
+ | जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | ||
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09:59, 11 नवम्बर 2010 का अवतरण
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो नौह-ए-अजल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो वायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मंज़र भी
उट्ठेगा नलहन का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो