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|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार,<ref>व्याकुलदिल</ref> नहीं कोई नहीं
राहरव<ref>पथिक</ref> होगा, कहीं और चला जाएगा
फिर कोई आया दिल-ए-ज़ारढल चुकी रात, नहीं कोई नहींबिखरने लगा तारों का गुबारलड़खडाने लगे एवानों<brref>महलों</ref> में ख्वाबीदा चिराग़<ref>सुप्त,स्वप्निलदीप</ref>राहरव होगासो गई रास्ता तक तक के हर एक रहगुज़र<ref>रास्ते</ref>अजनबी ख़ाक ने धुंधला दिए कदमों के सुराग़<ref>पदचिन्ह</ref>गुल करो<ref>बुझा दो</ref> शम'एं, कहीं और चला जाएगाबढ़ाओ मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़<brref>मदिरा और सुरापात्र उठा लो<br/ref>
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का गुबारअपने बेख़्वाब किवाडों<brref>लड़खडाने लगे एवानों में ख्वाबीदा चिराग़खुले हुए दरवाज़ों को<br/ref>को मुकफ़्फ़ल<brref>सो गई रास्ता तक तक के हर एक रहगुज़रताले लगा दो<br/ref>अजनबी ख़ाक ने धुंधला दिए कदमों के सुराग़<br>गुल करो शम'एं, बढ़ाओ मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़<br><br> अपने बेख्वाब किवाडों को मुकफ्फल कर लो<br>अब यहाँ कोई नहीं , कोई नहीं आयेगाआएगा...</poem>{{KKMeaning}}
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