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सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी
कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा
किस दिन तेरी शनवाई , ऐ दीद:दीदा-ए-तर होगी
कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना
वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है
अब शहर में यारों की , किस तरह बसर होगी
कब तक अभी रह देखें , ऐ कांटे-जनानाकब अश्र मुअय्यन है , तुझको तो ख़बर होगी</poem>