भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कब ठहरेगा दर्दे-दिल, कब रात बसर होगी / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (कब ठहरेगा दर्दे-दिल, कब रात बसर होगी / फ़ैज़ का नाम बदलकर कब ठहरेगा दर्दे-दिल, कब रात बसर होगी / फ़ैज़ )
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal‎}}
<poem>कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
+
<poem>
 +
कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
 
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी
 
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी
  
 
कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा
 
कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा
किस दिन तेरी शनवाई ऐ दीद:-ए-तर होगी
+
किस दिन तेरी शनवाई, दीदा-ए-तर होगी
  
 
कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना
 
कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना
पंक्ति 15: पंक्ति 16:
  
 
वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है
 
वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी
+
अब शहर में यारों की, किस तरह बसर होगी
  
कब तक अभी रह देखें ऐ कांटे-जनाना
+
कब तक अभी रह देखें, ऐ कांटे-जनाना
कब अश्र मुअय्यन है तुझको तो ख़बर होगी
+
कब अश्र मुअय्यन है, तुझको तो ख़बर होगी
 +
</poem>

11:38, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी

कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा
किस दिन तेरी शनवाई, ऐ दीदा-ए-तर होगी

कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना
कब सुबह-ए-सुखन होगी, कब शाम-ए-नज़र होगी

वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है
अब शहर में यारों की, किस तरह बसर होगी

कब तक अभी रह देखें, ऐ कांटे-जनाना
कब अश्र मुअय्यन है, तुझको तो ख़बर होगी