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"मुअम्मा /जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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तुम इक हर्फ़ हो | तुम इक हर्फ़ हो | ||
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और हम दोनों इक माने पायें | और हम दोनों इक माने पायें | ||
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ऐसा हो सकता है | ऐसा हो सकता है | ||
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लेकिन | लेकिन | ||
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सोचना होगा | सोचना होगा | ||
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इन ख़ाली खानों मे हमको भरना क्या है | इन ख़ाली खानों मे हमको भरना क्या है | ||
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13:24, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
हम दोनों जो हर्फ़<ref>अक्षर</ref> थे
हम इक रोज मिले
इक लफ्ज<ref> शब्द</ref>बना
और हमने इक माने <ref> अर्थ</ref> पाए
फिर जाने क्या हम पर गुजरी
और अब यूँ है
तुम इक हर्फ़ हो
इक खाने में
मैं इक हर्फ़ हूँ
इक खाने मे
बीच मे
कितने लम्हों के खाने ख़ाली है
फिर से कोई लफ्ज बने
और हम दोनों इक माने पायें
ऐसा हो सकता है
लेकिन
सोचना होगा
इन ख़ाली खानों मे हमको भरना क्या है
शब्दार्थ
<references/>