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"ग़म होते है/जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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14:25, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण


ग़म होते है जहां ज़हानत होती है
दुनिया में हर शय <ref> चीज</ref>की कीमत होती है


अक्सर वो कहते है वो बस मेरे है
अक्सर क्यूँ कहते है हैरत होती है


तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते है जब भी फुर्सत होती है


अपनी महबूबा में अपनी माँ देखे
बिन माँ के लड़कों की फितरत <ref> प्रकृति</ref> होती है


इक कश्ती में एक कदम ही रखते है
कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है

शब्दार्थ
<references/>