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"हमसे दिलचस्प कभी/जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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17:12, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते है
अच्छे लगते है मगर अच्छे नहीं होते है
चाँद में बुढ़िया, बुजुर्गों में खुदा को देखें
भोले अब इतने तो ये बच्चे नहीं होते है
कोई याद आये हमें, कोई हमे याद करे
और सब होता है, ये किस्से नहीं होते है
कोई मंजिल हो, बहुत दूर ही होती है मगर
रास्ते वापसी के लम्बे नहीं होते है
आज तारीख<ref> इतिहास</ref> तो दोहराती है खुद को लेकिन
इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते है |
शब्दार्थ
<references/>