भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़्वाब के गाँव में/जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जावेद अख़्तर |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर }} [[Category:…)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:26, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण



ख़्वाब के गाँव में पले है हम
पानी छलनी में ले चले है हम


छाछ फूंकें की अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले है हम


ख़ुद है अपने सफ़र की दुश्वारी<ref>मुश्किल</ref>
अपने पेरों के आबले<ref>छाले</ref> है हम


तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तुने ढाला है और ढले है हम


क्यूँ है, कब तक है, किस की खातिर है,
बड़े संजीदा <ref>गंभीर</ref> मसअले<ref>समस्या</ref> है हम

शब्दार्थ
<references/>