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"माँ / भाग १२ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
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इसलिए मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं | इसलिए मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं | ||
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मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा | मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा | ||
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बचपन में किसी बात पे हम रूठ गये थे | बचपन में किसी बात पे हम रूठ गये थे | ||
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उस दिन से इसी शहर में हैं घर नहीं जाते | उस दिन से इसी शहर में हैं घर नहीं जाते | ||
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बिछड़ के तुझ से तेरी याद भी नहीं आई | बिछड़ के तुझ से तेरी याद भी नहीं आई | ||
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हमारे काम ये औलाद भी नहीं आई | हमारे काम ये औलाद भी नहीं आई | ||
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मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना | मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना | ||
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चाँद रिश्ते में नहीं लगता है मामा अपना | चाँद रिश्ते में नहीं लगता है मामा अपना | ||
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मैं नर्म मिट्टी हूँ तुम रौंद कर गुज़र जाओ | मैं नर्म मिट्टी हूँ तुम रौंद कर गुज़र जाओ | ||
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कि मेरे नाज़ तो बस क़ूज़ागर उठाता है | कि मेरे नाज़ तो बस क़ूज़ागर उठाता है | ||
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मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले | मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले | ||
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घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं | घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं | ||
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उछलते—खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी | उछलते—खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी | ||
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तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है | तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है | ||
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कुछ खिलौने कभी आँगन में दिखाई देते | कुछ खिलौने कभी आँगन में दिखाई देते | ||
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काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते | काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते | ||
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20:35, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
इसलिए मैंने बुज़ुर्गों की ज़मीनें छोड़ दीं
मेरा घर जिस दिन बसेगा तेरा घर गिर जाएगा
बचपन में किसी बात पे हम रूठ गये थे
उस दिन से इसी शहर में हैं घर नहीं जाते
बिछड़ के तुझ से तेरी याद भी नहीं आई
हमारे काम ये औलाद भी नहीं आई
मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना
चाँद रिश्ते में नहीं लगता है मामा अपना
मैं नर्म मिट्टी हूँ तुम रौंद कर गुज़र जाओ
कि मेरे नाज़ तो बस क़ूज़ागर उठाता है
मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले
घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं
उछलते—खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
कुछ खिलौने कभी आँगन में दिखाई देते
काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते