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"ग़म की रूदाद सुनाने नहीं देती दुनिया / बिरजीस राशिद आरफ़ी" के अवतरणों में अंतर
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22:40, 16 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
ग़म की रूदाद<ref>कहानी</ref> सुनाने नहीं देती दुनिया
ज़ुल्म करती है बताने नहीं देती दुनिया
मुझको बदनाम भी करती है ये मयनोशी<ref>मदिरापान</ref> पर
होश में आओ तो आने नहीं देती दुनिया
एक फल खाने की पादाश<ref>सज़ा</ref> में जन्नत खो दी
ज़ह्र खाता हूँ तो खाने नहीं देती दुनिया
यह अमीरों की चहेती है अमीर इसके ग़ुलाम
हम ग़रीबों को ख़ज़ाने नहीं देती दुनिया
बस ये अच्छा है कि इन्सान को मरने बाद
जिस्म का बोझ उठाने नहीं देती दुनिया
मुझको मालूम है दुनिया की हक़ीक़त लेकिन
छोड़ के जाऊँ तो जाने नहीं देती दुनिया
रोज़ करते हैं वो मुझसे ये बहाने ‘राशिद’
आ तो जाऊँ मगर आने नहीं देती दुनिया
शब्दार्थ
<references/>