भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: शैलेन्द्र Category:कविताएँ Category:शैलेन्द्र ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ आज ...)
(कोई अंतर नहीं)

09:44, 31 मई 2007 का अवतरण

रचनाकार: शैलेन्द्र

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता


राह कहती,देख तेरे पांव में कांटा न चुभ जाए

कहीं ठोकर न लग जाए;

चाह कहती, हाय अंतर की कली सुकुमार

बिन विकसे न कुम्हलाए;

मोह कहता, देख ये घरबार संगी और साथी

प्रियजनों का प्यार सब पीछे न छुट जाए!


किन्तु फिर कर्तव्य कहता ज़ोर से झकझोर

तन को और मन को,

चल, बढ़ा चल,

मोह कुछ, औ' ज़िन्दगी का प्यार है कुछ और!

इन रुपहली साजिशों में कर्मठों का मन नहीं ठगता!

आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता!


आह, कितने लोग मुर्दा चांदनी के

अधखुले दृग देख लुट जाते;

रात आंखों में गुज़रती,

और ये गुमराह प्रेमी वीर

ढलती रात के पहले न सो पाते!

जागता जब तरुण अरुण प्रभात

ये मुर्दे न उठ पाते!

शुभ्र दिन की धूप में चालाक शोषक गिद्ध

तन-मन नोच खा जाते!

समय कहता--

और ही कुछ और ये संसार होता

जागरण के गीत के संग लोक यदि जगता!

आज मुझको मौत से भी डर नहीं लगता!


1947 में रचित