भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरी ख़बर / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य |संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:53, 17 नवम्बर 2010 का अवतरण
मैं वही आदमी हूँ
जिसके कंधे पर डूबेगा सूरज
सीने पर बटन नहीं है कई रातों से
धूल-भरे कॉलर झूलती हुई आस्तीनें
हवा में उड़ते हुए बाल
जेब से अधजली सिगरेट निकालकर कहूँगा
दादा, ज़रा माचिस देंगे?
आदमी अगर शरीफ़ हुआ
तो हाथ में सिगरेट लिए हुए
माचिस बढ़ाएगा आगे
मैं उसके हाथ की घड़ी को ताकूँगा
आँखों में जल उठेगा रेडियम
मैंने तुझसे मुहब्बत करके सनम-लेन-देन
अख़बार में नहीं
पुलिस रोज़नामचे में
मेरी
दो तस्वीरें होंगी- एक हँसता चेहरा,एक साइड फ़ेस
और नीचे लिक्खा होगा- स्नैच केस
पेट-भर पेट्रोल पीकर
हल्लागाड़ी दौड़ेगी मेरी खोज में
सर झुकाए शहर मुझे तलाश करेगा
मैं वही आदमी हूँ
सीने पर बटन नहीं है कई रातों से
जिसके कंधे पर डूबेगा सूरज