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"यार बिन तल्ख़ ज़िंदगनी थी / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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मेरे क़िस्से से सब की नींदें गईं<br>
 
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20:45, 17 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

यार बिन तल्ख़ जिंदगानी थी
दोस्ती मुद्दई-ए-जानी थी

शेब में फ़ायदा त'म्मुल का
सोचना तब था जब जवानी थी

मेरे क़िस्से से सब की नींदें गईं
कुछ अजब तौर की कहानी थी

कू-ए-क़ातिल से बच के निकला ख़िज़्र
इसी में उस की ज़िंदगनी थी

फ़ित्र पर भी था 'मीर' के इक रंग
कफ़नी पहनी तो ज़ाफ़रानी थी