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"अपनी अपनी ख़ूबियाँ और खामियाँ भी बाँट ले / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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दर्द, आँसू, बेक़रारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे | दर्द, आँसू, बेक़रारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे | ||
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07:54, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
अपनी अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बाँट लीं रुसवाइयाँ भी बाँट लें
बाँट लीं आसानियाँ, दुश्वावारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आँगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें
कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटियाँ भी बाँट लें
अपने हिस्से की ज़मीं तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादियाँ भी बाँट लें
दर्द, आँसू, बेक़रारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ में हम अपनी-अपनी पारियाँ भी बाँट लें