"हाथ उठाए हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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− | की इबादत भी वो जिस की जज़ा कोई नहीं | + | की इबादत भी तो वो जिस की जज़ा<ref>प्रतिफल |
+ | </ref> कोई नहीं | ||
− | ये भी वक़्त आना था अब | + | ये भी वक़्त आना था अब तू गोश-बर- आवाज़<ref>आवाज़ पर कान लगाए हुए</ref> है |
− | और मेरे | + | और मेरे बरबते-दिल<ref>सितार जैसा एक वाद्य यंत्र |
+ | </ref> में सदा<ref>आवाज़्</ref> कोई नहीं | ||
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही | आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही | ||
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वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से | वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से | ||
− | क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी | + | क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्शे-पा<ref>पद-चिह्न |
+ | </ref> कोई नहीं | ||
− | ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में | + | ख़ुद को यूँ महसूर<ref>घिरा हुआ </ref> कर बैठा हूँ अपनी ज़ात<ref>अस्तित्व |
+ | </ref> में | ||
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं | मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं | ||
कैसे रस्तों से चले और किस जगह पहुँचे "फ़राज़" | कैसे रस्तों से चले और किस जगह पहुँचे "फ़राज़" | ||
− | या हुजूम-ए-दोस्ताँ था साथ या कोई नहीं | + | या हुजूम-ए-दोस्ताँ<ref>दोस्तों का समूह |
+ | </ref> था साथ या कोई नहीं | ||
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08:14, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण
हाथ उठाए हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
की इबादत भी तो वो जिस की जज़ा<ref>प्रतिफल
</ref> कोई नहीं
ये भी वक़्त आना था अब तू गोश-बर- आवाज़<ref>आवाज़ पर कान लगाए हुए</ref> है
और मेरे बरबते-दिल<ref>सितार जैसा एक वाद्य यंत्र
</ref> में सदा<ref>आवाज़्</ref> कोई नहीं
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं
वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्शे-पा<ref>पद-चिह्न
</ref> कोई नहीं
ख़ुद को यूँ महसूर<ref>घिरा हुआ </ref> कर बैठा हूँ अपनी ज़ात<ref>अस्तित्व
</ref> में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं
कैसे रस्तों से चले और किस जगह पहुँचे "फ़राज़"
या हुजूम-ए-दोस्ताँ<ref>दोस्तों का समूह
</ref> था साथ या कोई नहीं