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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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सुबह-सुबह
 
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तालाब के दो फेरे लगाए
 
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सुबह-सुबह
 
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रात्रि शेष की भीगी दूबों पर
 
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नंगे पाँव चहलकदमी की
 
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सुबह-सुबह
 
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हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए
 
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माघ की कड़ी सर्दी के मारे
 
माघ की कड़ी सर्दी के मारे
 
  
 
सुबह-सुबह
 
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अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा
 
अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा
 
 
आम के कच्चे पत्तों का
 
आम के कच्चे पत्तों का
 
 
जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया
 
जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया
 
  
 
सुबह-सुबह
 
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गँवई अलाव के निकट
 
गँवई अलाव के निकट
 
 
घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा
 
घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा
 
  
 
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आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर
 
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कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा
 
कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा
 
 
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1976 में रचित
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'''1976 में रचित
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12:03, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

सुबह-सुबह
तालाब के दो फेरे लगाए

सुबह-सुबह
रात्रि शेष की भीगी दूबों पर
नंगे पाँव चहलकदमी की

सुबह-सुबह
हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए
माघ की कड़ी सर्दी के मारे

सुबह-सुबह
अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा
आम के कच्चे पत्तों का
जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया

सुबह-सुबह
गँवई अलाव के निकट
घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा

सुबह-सुबह
आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर
कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा
सुबह-सुबह


1976 में रचित