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"तुनुक मिजाजी नही चलेगी / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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तुनुक मिजाजी नहीं चलेगी
 
तुनुक मिजाजी नहीं चलेगी
 
 
नहीं चलेगा जी यह नाटक
 
नहीं चलेगा जी यह नाटक
 
 
सुन लो जी भाई मुरार जी
 
सुन लो जी भाई मुरार जी
 
 
बन्द करो अब अपने त्राटक
 
बन्द करो अब अपने त्राटक
 
  
 
तुम पर बोझ न होगी जनता
 
तुम पर बोझ न होगी जनता
 
 
ख़ुद अपने दुख-दैन्य हरेगी
 
ख़ुद अपने दुख-दैन्य हरेगी
 
 
हां, हां, तुम बूढी मशीन हो
 
हां, हां, तुम बूढी मशीन हो
 
 
जनता तुमको ठीक करेगी
 
जनता तुमको ठीक करेगी
 
  
 
बद्तमीज हो, बदजुबान हो...
 
बद्तमीज हो, बदजुबान हो...
 
 
इन बच्चों से कुछ तो सीखो
 
इन बच्चों से कुछ तो सीखो
 
 
सबके ऊपर हो, अब प्रभु जी
 
सबके ऊपर हो, अब प्रभु जी
 
 
अकड़ू-मल जैसा मत दीखो
 
अकड़ू-मल जैसा मत दीखो
 
  
 
नहीं, किसी को रिझा सकेंगे
 
नहीं, किसी को रिझा सकेंगे
 
 
इनके नकली लाड़-प्यार जी
 
इनके नकली लाड़-प्यार जी
 
 
अजी निछावर कर दूंगा मैं
 
अजी निछावर कर दूंगा मैं
 
 
एक तरूण पर सौ मुरार जी
 
एक तरूण पर सौ मुरार जी
 
  
 
नेहरू की पुत्री तो क्या थी!
 
नेहरू की पुत्री तो क्या थी!
 
 
भस्मासुर की माता थी वो
 
भस्मासुर की माता थी वो
 
 
अब भी है उसको मुगालता
 
अब भी है उसको मुगालता
 
 
भारत भाग्य विधाता थी वो
 
भारत भाग्य विधाता थी वो
 
  
 
सच-सच बोलो, उसके आगे
 
सच-सच बोलो, उसके आगे
 
 
तुम क्या थे भाई मुरार जी
 
तुम क्या थे भाई मुरार जी
 
 
सूखे-रूखे  काठ-सरीखे
 
सूखे-रूखे  काठ-सरीखे
 
 
पड़े हुए थे निराकार जी
 
पड़े हुए थे निराकार जी
 
  
 
तुम्हें छू दिया तरूण-क्रान्ति ने
 
तुम्हें छू दिया तरूण-क्रान्ति ने
 
 
लोकशक्ति कौंधी रग-रग में
 
लोकशक्ति कौंधी रग-रग में
 
 
अब तुम लहरों पर सवार हो
 
अब तुम लहरों पर सवार हो
 
 
विस्मय फैल गया है जग में
 
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कोटि-कोटि मत-आहुतियों में
 
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ख़ालिस स्वर्ण-समान ढले हो
खालिस स्वर्ण-समान ढले हो
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तुम चुनाव के हवन-कुंड से
 
तुम चुनाव के हवन-कुंड से
 
 
अग्नि-पुरुष जैसे निकले हो
 
अग्नि-पुरुष जैसे निकले हो
 
  
 
तरुण हिन्द के शासन का रथ
 
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खींच सकोगे पाँच साल क्या?
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ज़िद्दी हो  परले  दरज़े  के
 
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खाओगे सौ-सौ उबाल  क्या!
 
खाओगे सौ-सौ उबाल  क्या!
 
  
 
क्या से क्या तो हुआ अचानक
 
क्या से क्या तो हुआ अचानक
 
 
दिल का शतदल कमल खिल गया
 
दिल का शतदल कमल खिल गया
 
 
तुमको तो, प्रभु, एक जन्म में
 
तुमको तो, प्रभु, एक जन्म में
 
 
सौ जन्मों का सुफल मिल गया
 
सौ जन्मों का सुफल मिल गया
 
  
 
मन ही मन तुम किया करो, प्रिय
 
मन ही मन तुम किया करो, प्रिय
 
 
विनयपत्रिका  का  पारायण
 
विनयपत्रिका  का  पारायण
 
 
अपनी  तो  खुलने  वाली  है
 
अपनी  तो  खुलने  वाली  है
 
 
फिर से  शायद  वो  कारायण
 
फिर से  शायद  वो  कारायण
 
  
 
अभी नहीं ज़्यादा रगड़ूंगा
 
अभी नहीं ज़्यादा रगड़ूंगा
 
 
मौज करो, भाई मुरार जी!
 
मौज करो, भाई मुरार जी!
 
 
संकट की बेला आई तो
 
संकट की बेला आई तो
 
 
मुझ को भी लेना पुकार जी!
 
मुझ को भी लेना पुकार जी!
  
 
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(१९७७)
(१९७७ में रचित)
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12:09, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

तुनुक मिजाजी नहीं चलेगी
नहीं चलेगा जी यह नाटक
सुन लो जी भाई मुरार जी
बन्द करो अब अपने त्राटक

तुम पर बोझ न होगी जनता
ख़ुद अपने दुख-दैन्य हरेगी
हां, हां, तुम बूढी मशीन हो
जनता तुमको ठीक करेगी

बद्तमीज हो, बदजुबान हो...
इन बच्चों से कुछ तो सीखो
सबके ऊपर हो, अब प्रभु जी
अकड़ू-मल जैसा मत दीखो

नहीं, किसी को रिझा सकेंगे
इनके नकली लाड़-प्यार जी
अजी निछावर कर दूंगा मैं
एक तरूण पर सौ मुरार जी

नेहरू की पुत्री तो क्या थी!
भस्मासुर की माता थी वो
अब भी है उसको मुगालता
भारत भाग्य विधाता थी वो

सच-सच बोलो, उसके आगे
तुम क्या थे भाई मुरार जी
सूखे-रूखे काठ-सरीखे
पड़े हुए थे निराकार जी

तुम्हें छू दिया तरूण-क्रान्ति ने
लोकशक्ति कौंधी रग-रग में
अब तुम लहरों पर सवार हो
विस्मय फैल गया है जग में

कोटि-कोटि मत-आहुतियों में
ख़ालिस स्वर्ण-समान ढले हो
तुम चुनाव के हवन-कुंड से
अग्नि-पुरुष जैसे निकले हो

तरुण हिन्द के शासन का रथ
खींच सकोगे पाँच साल क्या?
ज़िद्दी हो परले दरज़े के
खाओगे सौ-सौ उबाल क्या!

क्या से क्या तो हुआ अचानक
दिल का शतदल कमल खिल गया
तुमको तो, प्रभु, एक जन्म में
सौ जन्मों का सुफल मिल गया

मन ही मन तुम किया करो, प्रिय
विनयपत्रिका का पारायण
अपनी तो खुलने वाली है
फिर से शायद वो कारायण

अभी नहीं ज़्यादा रगड़ूंगा
मौज करो, भाई मुरार जी!
संकट की बेला आई तो
मुझ को भी लेना पुकार जी!

(१९७७)