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"हताश / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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मेरा जग हो अन्तर्धान, | मेरा जग हो अन्तर्धान, | ||
तब भी क्या ऐसे ही तम में | तब भी क्या ऐसे ही तम में | ||
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14:11, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
जीवन चिरकालिक क्रन्दन ।
मेरा अन्तर वज्रकठोर,
देना जी भरसक झकझोर,
मेरे दुख की गहन अन्ध-
तम-निशि न कभी हो भोर,
क्या होगी इतनी उज्वलता-
इतना वन्दन अभिनन्दन ?
हो मेरी प्रार्थना विफल,
हृदय-कमल-के जितने दल
मुरझायें, जीवन हो म्लान,
शून्य सृष्टि में मेरे प्राण
प्राप्त करें शून्यता सृष्टि की,
मेरा जग हो अन्तर्धान,
तब भी क्या ऐसे ही तम में
अटकेगा जर्जर स्यन्दन ?