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"वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है / अहमद कमाल 'परवाज़ी'" के अवतरणों में अंतर

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बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,
 
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,
  
मैं इसलिए भी तेरे फ़न
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मैं इसलिए भी तेरे फ़न की क़द्र करता हूँ,
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तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,
 
तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,
  

06:56, 19 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
मैं कुछ कहूं तो तराजू निकाल लेता है

वो फूल तोड़े हमें कोई ऐतराज़ नहीं
मगर वो तोड़ के खुशबू निकाल लेता है,

अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर
बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,

मैं इसलिए भी तेरे फ़न की क़द्र करता हूँ,
तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,

वो बेवफाई का इज़हार यूं भी करता है,
परिंदे मार के बाजू निकाल लेता है