"(कविता) यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर
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उन सबको दरकिनार कर | उन सबको दरकिनार कर | ||
अभी पढ़ी जा सकती है कविता | अभी पढ़ी जा सकती है कविता | ||
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− | </poem> | + | लॉक-अप के पथरीले हिमकक्ष में |
+ | चीर-फाड़ के लिए जलाए हुए पेट्रोमैक्स की रोशनी को कँपाते हुए | ||
+ | हत्यारों द्वारा संचालित न्यायालय में | ||
+ | झूठ अशिक्षा के विद्यालय में | ||
+ | शोषण और त्रास के राजतंत्र के भीतर | ||
+ | सामरिक असामरिक कर्णधारों के सीने में | ||
+ | कविता का प्रतिवाद गूँजने दो | ||
+ | बांग्लादेश के कवि भी तैयार रहें लोर्का की तरह | ||
+ | दम घोंट कर हत्या हो लाश गुम जाये | ||
+ | स्टेनगन की गोलियों से बदन छिल जाये-तैयार रहें | ||
+ | तब भी कविता के गाँवों से | ||
+ | कविता के शहर को घेरना बहुत ज़रूरी है | ||
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+ | यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश | ||
+ | यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश | ||
+ | यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश | ||
+ | यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देश | ||
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08:31, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण
जो पिता अपने बेटे की लाश की शिनाख़्त करने से डरे
मुझे घृणा है उससे
जो भाई अब भी निर्लज्ज और सहज है
मुझे घृणा है उससे
जो शिक्षक बुद्धिजीवी, कवि, किरानी
दिन-दहाड़े हुई इस हत्या का
प्रतिशोध नहीं चाहता
मुझे घृणा है उससे
चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव
मैं हतप्रभ हुआ जा रहा हूँ
आठ जोड़ा खुली आँखें मुझे घूरती हैं नींद में
मैं चीख़ उठता हूँ
वे मुझे बुलाती हैं समय- असमय ,बाग में
मैं पागल हो जाऊँगा
आत्म-हत्या कर लूँगा
जो मन में आए करूँगा
यही समय है कविता लिखने का
इश्तिहार पर,दीवार पर स्टेंसिल पर
अपने ख़ून से, आँसुओं से हड्डियों से कोलाज शैली में
अभी लिखी जा सकती है कविता
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षत मुँह से
आतंक के रू-ब-रू वैन की झुलसाने वाली हेड लाइट पर आँखें गड़ाए
अभी फेंकी जा सकती है कविता
38 बोर पिस्तौल या और जो कुछ हो हत्यारों के पास
उन सबको दरकिनार कर
अभी पढ़ी जा सकती है कविता
लॉक-अप के पथरीले हिमकक्ष में
चीर-फाड़ के लिए जलाए हुए पेट्रोमैक्स की रोशनी को कँपाते हुए
हत्यारों द्वारा संचालित न्यायालय में
झूठ अशिक्षा के विद्यालय में
शोषण और त्रास के राजतंत्र के भीतर
सामरिक असामरिक कर्णधारों के सीने में
कविता का प्रतिवाद गूँजने दो
बांग्लादेश के कवि भी तैयार रहें लोर्का की तरह
दम घोंट कर हत्या हो लाश गुम जाये
स्टेनगन की गोलियों से बदन छिल जाये-तैयार रहें
तब भी कविता के गाँवों से
कविता के शहर को घेरना बहुत ज़रूरी है
यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश
यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देश
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