भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"(कविता) यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 52: पंक्ति 52:
 
यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
 
यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
 
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
 
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देश
+
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देशमैं छीन लाऊँगा अपने देश को
 +
सीने मे‍ छिपा लूँगा कुहासे से भीगी कांस-संध्या और विसर्जन
 +
शरीर के चारों ओर जुगनुओं की कतार
 +
या पहाड़-पहाड़ झूम खीती
 +
अनगिनत हृदय,हरियाली,रूपकथा,फूल-नारी-नदी
 +
एक-एक तारे का नाम लूँगा
 +
डोलती हुई हवा,धूप के नीचे चमकती मछली की आँख जैसा ताल
 +
प्रेम जिससे मैं जन्म से छिटका हूँ कई प्रकाश-वर्ष दूर
 +
उसे भी बुलाउँगा पास क्रांति के उत्सव के दिन।
 +
 
 +
हज़ारों वाट की चमकती रोशनी आँखों में फेंक रात-दिन जिरह
 +
नहीं मानती
 +
नाख़ूनों में सुई  बर की सिल पर लिटाना
 +
नहीं मानती
 +
नाक से ख़ून बहने तक उल्टे लटकाना
 +
नहीं मानती
 +
होंठॊं पर बट  दहकती सलाख़ से शरीर दाघअना
 +
नहीं मानती
 +
धारदार चाबुक से क्षत-विक्षत लहूलुहान पीठ पर सहसा एल्कोहल
 +
नहीं मानती
 +
नग्न देह पर इलेक्ट्रिक शाक  कुत्सित विकृत यौन अत्याचार
 +
नहीं मानती
 +
पीट-पीट हत्या    कनपटी से रिवाल्वर सटाकर गोली मारना
 +
नहीं मानती
 +
कविता नहीं मानती किसी बाधा को
 +
कविता सशस्त्र है  कविता स्वाधीन है  कविता निर्भीक है
 +
ग़ौर से देखो: मायकोव्स्की,हिकमत,नेरुदा,अरागाँ, एलुआर
 +
हमने तुम्हारी कविता को हारने नहीं दिया
 +
समूचा देश मिलकर एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में है
 +
छापामार छंदों में रचे जा रहे हैं सारे अलंकार.........
 +
 
 +
 
 +
 
 
...</poem>
 
...</poem>

13:20, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण

जो पिता अपने बेटे की लाश की शिनाख़्त करने से डरे
मुझे घृणा है उससे
जो भाई अब भी निर्लज्ज और सहज है
मुझे घृणा है उससे
जो शिक्षक बुद्धिजीवी, कवि, किरानी
दिन-दहाड़े हुई इस हत्या का
प्रतिशोध नहीं चाहता
मुझे घृणा है उससे

चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव
मैं हतप्रभ हुआ जा रहा हूँ
आठ जोड़ा खुली आँखें मुझे घूरती हैं नींद में
मैं चीख़ उठता हूँ
वे मुझे बुलाती हैं समय- असमय ,बाग में
मैं पागल हो जाऊँगा
आत्म-हत्या कर लूँगा
जो मन में आए करूँगा

यही समय है कविता लिखने का
इश्तिहार पर,दीवार पर स्टेंसिल पर
अपने ख़ून से, आँसुओं से हड्डियों से कोलाज शैली में
अभी लिखी जा सकती है कविता
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षत मुँह से
आतंक के रू-ब-रू वैन की झुलसाने वाली हेड लाइट पर आँखें गड़ाए
अभी फेंकी जा सकती है कविता
38 बोर पिस्तौल या और जो कुछ हो हत्यारों के पास
उन सबको दरकिनार कर
अभी पढ़ी जा सकती है कविता

लॉक-अप के पथरीले हिमकक्ष में
चीर-फाड़ के लिए जलाए हुए पेट्रोमैक्स की रोशनी को कँपाते हुए
हत्यारों द्वारा संचालित न्यायालय में
झूठ अशिक्षा के विद्यालय में
शोषण और त्रास के राजतंत्र के भीतर
सामरिक असामरिक कर्णधारों के सीने में
कविता का प्रतिवाद गूँजने दो
बांग्लादेश के कवि भी तैयार रहें लोर्का की तरह
दम घोंट कर हत्या हो लाश गुम जाये
स्टेनगन की गोलियों से बदन छिल जाये-तैयार रहें
तब भी कविता के गाँवों से
कविता के शहर को घेरना बहुत ज़रूरी है


यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश
यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देशमैं छीन लाऊँगा अपने देश को
सीने मे‍ छिपा लूँगा कुहासे से भीगी कांस-संध्या और विसर्जन
शरीर के चारों ओर जुगनुओं की कतार
या पहाड़-पहाड़ झूम खीती
अनगिनत हृदय,हरियाली,रूपकथा,फूल-नारी-नदी
एक-एक तारे का नाम लूँगा
डोलती हुई हवा,धूप के नीचे चमकती मछली की आँख जैसा ताल
प्रेम जिससे मैं जन्म से छिटका हूँ कई प्रकाश-वर्ष दूर
उसे भी बुलाउँगा पास क्रांति के उत्सव के दिन।

हज़ारों वाट की चमकती रोशनी आँखों में फेंक रात-दिन जिरह
नहीं मानती
नाख़ूनों में सुई बर की सिल पर लिटाना
नहीं मानती
नाक से ख़ून बहने तक उल्टे लटकाना
नहीं मानती
होंठॊं पर बट दहकती सलाख़ से शरीर दाघअना
नहीं मानती
धारदार चाबुक से क्षत-विक्षत लहूलुहान पीठ पर सहसा एल्कोहल
नहीं मानती
नग्न देह पर इलेक्ट्रिक शाक कुत्सित विकृत यौन अत्याचार
नहीं मानती
पीट-पीट हत्या कनपटी से रिवाल्वर सटाकर गोली मारना
नहीं मानती
कविता नहीं मानती किसी बाधा को
कविता सशस्त्र है कविता स्वाधीन है कविता निर्भीक है
ग़ौर से देखो: मायकोव्स्की,हिकमत,नेरुदा,अरागाँ, एलुआर
हमने तुम्हारी कविता को हारने नहीं दिया
समूचा देश मिलकर एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में है
छापामार छंदों में रचे जा रहे हैं सारे अलंकार.........



...