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"बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को / अदम गोंडवी" के अवतरणों में अंतर

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21:33, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को