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"अपने हाथ अपना खून चाहती / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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प्यास मे कितना खून चाहती है | प्यास मे कितना खून चाहती है | ||
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+ | आशिक़ी तो जुनून चाहती है | ||
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इक सुहागन जो ऊन चाहती है | इक सुहागन जो ऊन चाहती है | ||
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फिर वही मई व जून चाहती है | फिर वही मई व जून चाहती है | ||
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और भी कुछ फ़ुनून चहती है | और भी कुछ फ़ुनून चहती है | ||
− | छत हमारे गुमान की | + | छत हमारे गुमान की ’बेख़ुद |
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+ | अब यक़ीं का सुतून चाहती है</poem> |
07:45, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
अपने हाथ अपना ख़ून चाहती है
ज़िन्दगी अब सुकून चाहती है
अब ज़मीं नफ़रतों की धूप नहीं
प्यार का मानसून चाहती है
भूक में कितने जिस्म ये धरती
प्यास मे कितना खून चाहती है
इश्क़ अहले ख़ि
रद का काम नहीं
आशिक़ी तो जुनून चाहती है
ख़्वाब
शायद वो बुन रही है कोई
इक सुहागन जो ऊन चाहती है
ज़िन्दगी उम्र के दिसम्बर में
फिर वही मई व जून चाहती है
कितनी नादान है ये दुनिया भी
पहले जैसा सुकून चाहती है
कामयाबी सुखनवरी ही नही
और भी कुछ फ़ुनून चहती है
छत हमारे गुमान की ’बेख़ुद
’
अब यक़ीं का सुतून चाहती है