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"अपनी अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | इश्क़ में हम अपनी अपनी पारियाँ भी बाँट लें</poem> |
07:58, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बात ली रुसवाइयाँ भी बाट ले
बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें
कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटियाँ भी बाँट लें
अपने हिस्से की ज़ंमी तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादिया भी बाँट लें
दर्द, आँसू, बेकरारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ में हम अपनी अपनी पारियाँ भी बाँट लें