भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दर्दे-दिल जान का आजार है मैं जानता हूँ / संजय मिश्रा 'शौक'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=संजय मिश्रा शौक संग्रह= …) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{KKRachna | + | {{KKRachna |
− | + | | रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक' | |
− | संग्रह= | + | | संग्रह= |
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGhazal}} |
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
दर्दे-दिल जान का आजार है मैं जानता हूँ | दर्दे-दिल जान का आजार है मैं जानता हूँ |
08:51, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
दर्दे-दिल जान का आजार है मैं जानता हूँ
और अल्लाह मददगार है मैं जानता हूँ
मंजरे-सुब्ह शफकजार है मैं जानता हूँ
ये तुम्हारा रूखे-अनवार है मैं जानता हूँ
मैं बिना कलमा पढ़े भी तो मुसलमां ठहरा
हाँ मेरे दोश पे जुन्नार है मैं जानता हूँ
एक-इक हर्फ़ महकने लगा फूलों की तरह
ये तेरी गर्मी-ए-गुफ्तार है मैं जानता हूँ
ढूँढते हैं मेरी आँखों में तुझे शहर के लोग
तेरा मिलना भी तो दुश्वार है मैं जानता हूँ
रेहन रक्खे जो मेरी कौम के मुस्तकबिल को
वो मेरी कौम का सरदार है मैं जानता हूँ