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"कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के / संजय मिश्रा 'शौक'" के अवतरणों में अंतर
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कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के | कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के | ||
लाया हूँ इनसे फिक्र के मोती निकाल के | लाया हूँ इनसे फिक्र के मोती निकाल के |
08:59, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
कुछ तो मिला है आँखों के दरिया खंगाल के
लाया हूँ इनसे फिक्र के मोती निकाल के
हमने भी ढूंढ ली है जमीं आसमान पर
रखना है हमको पाँव बहुत देखभाल के
बच्चा दिखा रहा था मुझे जिन्दगी का सच
कागज़ की एक नाव को पानी में डाल के
उम्मीद के दिए में भरा सांस का लहू
जंगल सा एक ख्वाब का आँखों में पाल के
बुझते हुए दीयों को पिलाया है खूने-दिल
मिलते कहाँ हैं लोग हमारी मिसाल के