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"ख़ुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं / संजय मिश्रा 'शौक'" के अवतरणों में अंतर
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खुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं | खुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं | ||
जब इक कमरे में हम कागज़ की फुलवारी बनाते हैं | जब इक कमरे में हम कागज़ की फुलवारी बनाते हैं |
09:03, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
खुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं
जब इक कमरे में हम कागज़ की फुलवारी बनाते हैं
गज़ल के वास्ते इपनी जमीं हम किस तरह ढूंढें
जमीनों के सभी नक़्शे तो पटवारी बनाते हैं
तलाशी में उन्हीं के घर निकलती है बड़ी दौलत
जो ठेकेदार हैं और काम सरकारी बनाते हैं
इन्हें क्या फर्क पड़ता है कोई आए कोई जाए
यही वो लोग हैं जो राग-दरबारी बनाते हैं
जरूरत फिर हवस के खोल से बाहर निकल आई
कि अब माली ही खुद गुंचों को बाजारी बनाते हैं.