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"सारी रात / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>'''सारी रात''' धीरे - धीरे बात करो सारी रात प्यार से । भोर- होते चाँ…)
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19:37, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण

सारी रात

धीरे - धीरे बात करो सारी रात प्यार से ।

भोर- होते चाँद के ही साथ-साथ जाउँगा
हो सका तो शाम को सितारों के संग आऊँगा
धीरे - धीरे ताप हरो प्यार के अंगार से |

तन का सिंगार तो हजार बार होता है
कितु प्यार जीवन में एक बार होता है
धीरे धीरे बूँद चुनो जिन्दगी की धार से ।

कोई नहीं विश्व में जो प्यार बिना जी सके
और गीत गाने वाले अधरों को सी सके
धीरे धीरे मीत खींचो प्राण के सितार से ।

देख देख हमें तुम्हें चाँद गला जा रहा
क्योंकि प्यार से हमारा प्राण छला जा रहा
धीरे धीरे प्राण ही निकाल लो दुलार से ।