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"मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
 
मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना।
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जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।
  
 
मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
 
मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
 
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
 
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आंख मिलाता हूँ उन आंखों से
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मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
 
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।
 
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।
  
आंखों की भाषाएं तो अनगिन हैं
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आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं  
जो भी सुंदर हो समझा देना।
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जो भी सुंदर हो समझा देना ।
  
पूजा करता हूं उस कमजोरी की
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पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मजबूर कर रही है
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जो जीने को मज़बूर कर रही है
 
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
 
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है।
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जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।
  
 
दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
 
दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना।
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जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।
  
 
कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
 
कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
 
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
 
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
 
संकेत कर रहा नभ वाला घन
 
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा।
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प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।
 
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पर मैं खुद ही प्यासा हूं मरुथल सा
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यह बात समंदर को समझा देना।
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चांदनी चढ़ाता हूं उन चरणों पर
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पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
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यह बात समंदर को समझा देना ।
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चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
 
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
 
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज लगाता हूं उन गीतों को
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आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं।
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जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।
  
मधुवन में सोये गीत हजारों हैं
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मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना।
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जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।
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21:22, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।

आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना ।

पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मज़बूर कर रही है
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।

दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।

कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।

पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
यह बात समंदर को समझा देना ।
चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।

मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।