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<poem>मुझसे कह देना जब उजास की बात करो तोमुझ से कह देना जब धरती पर गंगाजल सीकिरणें उतरे आकरसारा कल्मष धुल जाता हैताप सूर्य का पाकर कुदरत की जब कहो कहानीमुझसे कह देना घर की देहरी पर छोटा सादीप हमेशा धरनाउसका काम यही होगा बसपल-पल तम को हरना अंधियारे से लडना हो तोमुझसे कह देना एक पलक में चाँद छुपा हैएक पलक मे सूरजकई समन्दर सबके भीतरइसमें कैसा अचरज{{KKGlobal}}{{KKParichayजब काया का |चित्र उकेरो='''मुझसे कह देना'''|नाम=संजय आचार्य वरुण|उपनाम=जिसने अपने भीतर-भीतर|जन्म= खुद को ही ललकारा|जन्मस्थान=राजस्थान भारतखुद को किया पराजित जिसने|मृत्यु= उससे ये जग हारा|कृतियाँ= |विविध=भरनी हो हुंकार अगर तो|अंग्रेज़ीनाम=Sanjay Acharya Varunमुझसे कह देना|जीवनी=[[संजय आचार्य वरुण / परिचय]]|shorturl=जीवन की बारहखडी बांचीशब्द नहीं घड पायाजितना-जितना भरा स्वयं कोउतना खाली पाया अर्थ उम्र का मिल जा तो}}* [[मुझसे कह देना/ संजय आचार्य वरुण]] एक किनारे सत्य खडा हैएक किनारे मेलाबीच में है इस दुनियाआता जाता रेला चलना हो उस पार अगर तोमुझसे कह देना।<* [[ /poem>संजय आचार्य वरुण]]
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