भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन में मेरे उत्सव जैसा हो जाता है /ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna रचनाकार=ओमप्रकाश यती संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> मन में मेरे उत…)
(कोई अंतर नहीं)

21:27, 22 नवम्बर 2010 का अवतरण

{{KKRachna रचनाकार=ओमप्रकाश यती संग्रह= }}



मन में मेरे उत्सव जैसा हो जाता है
तुमसे मिलकर खुद से मिलना हो जाता है

चिड़िया, तितली, फूल, सितारे, जुगनू सब हैं
लेकिन इनको देखे अर्सा हो जाता है

दिन छिपने तक तो रहता है आना-जाना
फिर गावों का रस्ता सूना हो जाता है

भीड़ बहुत ज़्यादा दिखती है यूँ देखो तो
लेकिन जब चल दो तो रस्ता हो जाता है

जब आते हैं घर में मेरे माँ-बाबूजी
मेरा मन फिर से इक बच्चा हो जाता है