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02:38, 24 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
हमारे
अहसासों की धरती पर
पल रहे हैं कुछ खट्टे-मीठे
सपने
जो मुखौटे को चीरकर
दिल की तलहटी में फलते हैं
लोग तो पूजा करते हैं शिखर की
और हम...?
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : स्वयं कवि